प्रशन :- गीता का ज्ञान किसने दिया?
उत्तर :- अगर किसी हिंदू से पूछेंगे कि गीता का ज्ञान किसने दिया तो वो तुरंत कहेगा श्री कृष्ण ने लेकिन क्या वाकई गीता का ज्ञान श्री कृष्ण ने दिया था या श्री कृष्ण के अंदर किसी ने प्रवेश कर के?
असलियत यह है कि गीता का ज्ञान काल ने (जो कि ब्रह्मा विष्णु शिव जी का पिता है और दुर्गा जी का पति है)उसने श्री कृष्ण जी में प्रवेश करके बोला था|
आइए जानते हैं प्रमाणो के साथ
प्रमाण 1 :- गीता अध्याय 10 में जब गीता ज्ञान दाता ने अपना
विराट रूप दिखा दिया तो उसको देखकर अर्जुन काँपने लगा, भयभीत हो गया।
यहाँ पर यह बताना भी अनिवार्य है कि अर्जुन का साला श्री कृष्ण था क्योंकि श्री
कृष्ण की बहन सुभद्रा का विवाह अर्जुन से हुआ था।
गीता ज्ञान दाता ने जिस समय अपना भयंकर विराट रूप दिखाया जो हजार
भुजाओं वाला था। तब अर्जुन ने पूछा कि हे देव! आप कौन हैं? (गीता अध्याय
11 श्लोक 31)
हे सहंस्राबाहु (हजार भुजा वाले) आप अपने चतुर्भुज रूप में दर्शन दीजिए
(क्योंकि अर्जुन उन्हें विष्णु अवतार कृष्ण तो मानता ही था, परन्तु उस समय श्री
कृष्ण के शरीर से बाहर निकलकर काल ने अपना अपार विराट रूप दिखाया था)
मैं भयभीत हूँ, आपके इस रूप को सहन नहीं कर पा रहा हूँ। (गीता अध्याय 11
श्लोक 46)
विचार करें :- क्या हम अपने साले से पूछेंगे कि हे महानुभाव!
बताईए आप कौन हैं? नहीं। एक समय एक व्यक्ति में प्रेत बोलने लगा। साथ बैठे
व्यक्ति ने पूछा आप कौन बोल रहे हो? उत्तर मिला कि तेरा मामा बोल रहा हूँ।
मैं दुर्घटना में मरा था। क्या हम अपने भाई को नहीं जानते? ठीक इसी प्रकार श्री
कृष्ण में काल बोल रहा था।
प्रमाण 2 :- गीता अध्याय 11 श्लोक 21 में अर्जुन ने कहा कि आप तो
देवताओं के समूह के समूह को ग्रास (खा) रहे हैं जो आपकी स्तुति हाथ जोड़कर
भयभीत होकर कर रहे हैं। महर्षियों तथा सिद्धों के समुदाय आप से अपने जीवन
की रक्षार्थ मंगल कामना कर रहे हैं। गीता अध्याय 11 श्लोक 32 में गीता ज्ञान
दाता ने बताया कि हे अर्जुन! मैं बढ़ा हुआ काल हूँ। अब प्रवृत हुआ हूँ अर्थात्
श्री कृष्ण के शरीर में अब प्रवेश हुआ हूँ। सर्व व्यक्तियों का नाश करूँगा। विपक्ष
की सर्व सेना, तू युद्ध नहीं करेगा तो भी नष्ट हो जाएगी।
इससे सिद्ध हुआ कि गीता का ज्ञान श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रविष्ट होकर
काल ने कहा है। श्री कृष्ण जी ने पहले कभी नहीं कहा कि मैं काल हूँ। श्री कृष्ण
जी को देखकर कोई भयभीत नहीं होता था। गोप-गोपियाँ, ग्वाल-बाल, पशु-पक्षी
सब दर्शन करके आनंदित होते थे। तो ‘‘क्या श्री कृष्ण जी काल थे?‘‘ नहीं। इसलिए गीता ज्ञान दाता ‘‘काल‘‘ है जिसने श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रवेश
करके गीता शास्त्रा का ज्ञान दिया।
प्रमाण 3 :- गीता अध्याय 11 श्लोक 47 में गीता ज्ञानदाता ने कहा कि
हे अर्जुन! मैंने प्रसन्न होकर अपनी शक्ति से तेरी दिव्य दृष्टि खोलकर यह विराट
रूप दिखाया है। यह विराट रूप तेरे अतिरिक्त पहले किसी ने नहीं देखा है।
विचार करें :- महाभारत ग्रन्थ में प्रकरण आता है कि
जिस समय श्री कृष्ण जी कौरवों की सभा में उपस्थित थे और उनसे कह रहे थे
कि आप दोनों (कौरव और पाण्डव) आपस में बातचीत करके अपनी सम्पत्ति
(राज्य) का बटँवारा कर लो, युद्ध करना शोभा नहीं देता। पाण्डवों ने कहा कि
हमें पाँच (5) गाँव दे दो, हम उन्हीं से निर्वाह कर लेंगे। दुर्योधन ने यह भी माँग
नहीं मानी और कहा कि पाण्डवों के लिए सुई की नोक के समान भी राज्य नहीं
है, युद्ध करके ले सकते हैं। इस बात से श्री कृष्ण भगवान बहुत नाराज हो गए
तथा दुर्योधन से कहा कि तू पृथ्वी के नाश के लिए जन्मा है, कुलनाश करके
टिकेगा। भले मानव! कहाँ आधा, राज्य कहाँ 5 गाँव। कुछ तो शर्म कर ले।
इतनी बात श्री कृष्ण जी के मुख से सुनकर दुर्योधन राजा आग-बबूला हो गया
और सभा में उपस्थित अपने भाईयों तथा मन्त्रियों से बोला कि इस कृष्ण यादव
को गिरफ्तार कर लो। उसी समय श्री कृष्ण जी ने विराट रूप दिखाया। सभा में
उपस्थित सर्व सभासद उस विराट रूप को देखकर भयभीत होकर कुर्सियों के
नीचे छिप गए, कुछ आँखों पर हाथ रखकर जमीन पर गिर गए। श्री कृष्ण जी
सभा छोड़ कर चले गए तथा अपना विराट रूप समाप्त कर दिया।
अब उस बात पर विचार करते हैं जो गीता अध्याय 11 श्लोक 47 में गीता
ज्ञान दाता ने कहा था कि यह मेरा विराट रूप तेरे अतिरिक्त अर्जुन! पहले किसी
ने नहीं देखा था। यदि श्री कृष्ण गीता ज्ञान बोल रहे होते तो यह कभी नहीं कहते
कि मेरा विराट रूप तेरे अतिरिक्त पहले किसी ने नहीं देखा था क्योंकि श्री कृष्ण
जी के विराट रूप को कौरव तथा अन्य सभासद पहले देख चुके थे।
इससे सिद्ध हुआ कि श्रीमद्भगवत गीता का ज्ञान श्री कृष्ण ने नहीं कहा,
उनके शरीर में प्रेतवत प्रवेश करके काल (क्षर पुरूष) ने कहा था।
प्रमाण 4:- महाभारत ग्रन्थ में (गीता प्रैस गोरखपुर (न्ण्च्) से प्रकाशित
में) भाग-2 पृष्ठ 800-801 पर लिखा है कि महाभारत के युद्ध के पश्चात् राजा
युधिष्ठर को राजगद्दी पर बैठाकर श्री कृष्ण जी ने द्वारिका जाने की तैयारी की।
तब अर्जुन ने श्री कृष्ण जी से कहा कि आप वह गीता वाला ज्ञान फिर से सुनाओ,
मैं उस ज्ञान को भूल गया हूँ। श्री कृष्ण जी ने कहा कि हे अर्जुन! आप बड़े
बुद्धिहीन हो, बड़े श्रद्धाहीन हो। आपने उस अनमोल ज्ञान को क्यों भुला दिया,
अब मैं उस ज्ञान को नहीं सुना सकता क्योंकि मैंने उस समय योगयुक्त होकर
गीता का ज्ञान सुनाया था।
विचार करें :- युद्ध के समय योगयुक्त हुआ जा सकता है तो शान्त
वातावरण में योगयुक्त होने में क्या समस्या हो सकती है? वास्तव में यह ज्ञान
काल ने श्री कृष्ण में प्रवेश करके बोला था।
श्री कृष्ण जी को स्वयं तो वह गीता ज्ञान याद नहीं, यदि वे वक्ता थे तो
वक्ता को तो सर्व ज्ञान याद होना चाहिए। श्रोता को तो प्रथम बार में 40 प्रतिशत
ज्ञान याद रहता है। इससे सिद्ध है कि गीता का ज्ञान श्री कृष्ण जी में प्रवेश
होकर काल (क्षर पुरूष) ने बोला था। उपरोक्त प्रमाणों से स्पष्ट हुआ कि श्रीमद्
भगवत गीता का ज्ञान श्री कृष्ण ने नहीं कहा। उनको तो पता ही नहीं कि क्या
कहा था, श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रवेश करके काल पुरूष (क्षर पुरूष) ने बोला था।