Monday, November 19, 2018

Shivling Ki Sachai

शिवलिंग की सच्चाई 


शिवलिंग की पूजा हिन्दू धर्म में हर कोई करता है लेकिन बहुत ही अफसोस की बात है की उनमे से यह कोई नहीं जनता की आखिर शिवलिंग है क्या,उसका मतलब क्या है और उसकी पूजा कैसे प्रारम्भ हुई। कोई कहता है की शिवलिंग मतलब होता है शिव का प्रकार क्योकि लिंग मतलब प्रकार भी होता है और कोई कहता है शिवलिंग मतलब शिव का गुप्त अंग क्योकि लिंग मतलब गुप्त अंग भी होता है। इनमे से सही क्या है? आज हम आपको बताएँगे शिवलिंग वास्तविक में है क्या और इसकी पूजा कैसे प्रारम्भ हुई। 

शिवलिंग की पूजा कैसे प्रारम्भ हुई?


शिव महापुराण (जिसके प्रकाशक है "खेमराज श्री कृषणदास प्रकाशन मुंबई", हिंदी टीकाकार (अनुवादक) है विद्याविरिधि पंडित ज्वाला प्रसाद जी मिश्र) भाग-1  में विद्वेश्वर संहिता अध्याय 5 पेज 11 पर नंदिकेश्वर यानी शिव के वाहन ने बताया की शिवलिंग की पूजा कैसे प्रारम्भ हुई ?
  • विद्यवेश्वर संहिता अध्याय 5 श्लोक 27.30:- पूर्व काल में जो पहला कल्प जो लोक में विख्यात है। उस समय महात्मा ब्रह्मा और विष्णु का परस्पर युद्ध हुआ।(27) उनके मान को दूर करने को उनके बीच में उन निष्कल परमात्मा ने स्तम्भरूप अपना स्वरूप दिखाया।(28) तब जगत के हित की इच्छा से निर्गुण शिव ने उस तेजोमय स्तंभ से अपने लिंग आकार का स्वरूप दिखाया।(29 ) उसी दिन से  लोक में वह निष्कल शिव जी का लिंग विख्यात हुआ। (30)


  • विद्वेश्वर संहिता पेज 18 अध्याय  9 श्लोक 27 -30 :- इससे मैं अज्ञात स्वरूप हूँ। पीछे तुम्हें दर्शन के निमित साक्षात् ईश्वर तत्क्षणही मैं सगुण रूप हुआ हूँ।(40) मेरे ईश्वर रूप को सकलत्व जानों और यह निष्कल स्तंभ ब्रह्म का बोधक है।(41) लिंग लक्षण होने से यह मेरा लिंग स्वरूप निर्गुण होगा। इस कारण हे पुत्रो! तुम नित्य इसकी अर्चना करना।(42)   यह सदा मेरी आत्मा रूप है और मेरी निकटता का कारण है। लिंग और लिंगी के अभेद से यह महत्व नित्य पूजनीय है।(43) 


शिवलिंग है सदा शिव का गुप्त अंग 


 आप ने ऊपर के प्रमाणों से जाना की शिवलिंग की पूजा कैसे प्रारम्भ हुई। अब आपको बताते है की शिव लिंग सदा शिव का गुप्त अंग है और यह बात सिद्ध भी करेंगे ऊपर के ही प्रमाणों के साथ।
 कुछ बिन्दूए ऊपर दिए गए प्रमाणों से जिनसे से सिद्ध होता है की शिवलिंग सदा शिव का गुप्त अंग है।
  • तब जगत के हित की इच्छा से निर्गुण शिव ने उस तेजोमय स्तंभ से अपने लिंग आकार का स्वरूप दिखाया।(29 )
  • यह सदा मेरी आत्मा रूप है और मेरी निकटता का कारण है। लिंग और लिंगी के अभेद से यह महत्व नित्य पूजनीय है।(43)
विचार कीजिये :-  1) अध्याय 5  श्लोक 29 में साफ लिखा है की सदा शिव ने तेजोमय स्तम्ब को गुप्त कर के अपने लिंग(गुप्त अंग) के आकर की पत्थर की मूर्ति खड़ी  कर दी। 
2) अध्याय 9 श्लोक 43 से और भी जायदा स्पष्ट हो गया की शिवलिंग पुरुष गुप्त अंग(लिंग) तथा स्त्री के गुप्त अंग का जोड़ हैं। 

परमातमा कबीर जी के शिवलिंग पर विचार 

वाणी:- धरै शिव लिंगा बहु विधि रंगा, गाल बजावैं गहले।
जे लिंग पूजें शिव साहिब मिले, तो पूजो क्यों ना खैले।।

शब्दार्थ:- परमेश्वर कबीर जी ने समझाया है कि तत्वज्ञानहीन मूर्ति पूजक अपनी साधना को श्रेष्ठ बताने के लिए गहले यानि ढ़ीठ व्यक्ति गाल बजाते हैं यानि व्यर्थ की बातें बड़बड़ करते हैं जिनका कोई शास्त्रा आधार नहीं होता। वे जनता को भ्रमित करने के लिए विविध प्रकार के रंग-बिरंगे पत्थर के शिवलिंग रखकर अपनी रोजी-रोटी चलाते हैं।

कबीर जी ने कहा है कि मैं उन्हें बताना चाहता हूँ कि यदि शिव जी के लिंग को पूजने से शिव जी भगवान का लाभ लेना चाहते हो तो आप धोखे में हैं।
यदि ऐसी बेशर्म साधना करनी है तो खागड़ (व्गत्रडंसम ब्वू) के लिंग की पूजा कर लो जिससे गाय को गर्भ होता है। उससे अमृत दूध मिलता है। हल जोतने के लिए बैल व दूध पीने के लिए गाय उत्पन्न होती है जो प्रत्यक्ष लाभ दिखाई देता है। आपको पता है कि खागड़ के लिंग से कितना लाभ मिलता है। फिर भी उसकी पूजा नहीं कर सकते क्योंकि यह बेशर्मी का कार्य है।

देखे वीडियो क माधयम से शिवलिंग की सचाई 



निष्कर्ष :शिवलिंग सदा शिव का गुप्तांग है। इस शिवलिंग की पूजा अंध श्रद्धावान करते हैं जो शर्म की बात तो है ही, परंतु धर्म के विरूद्ध भी है क्योंकि यह गीता व वेद शास्त्रों में नहीं लिखी है। इससे स्पष्ट है कि आप अंध श्रद्धावानों को यही नहीं पता है कि यह पत्थर का बना शिवलिंग व जिसमें यह प्रविष्ट दिखाया है, यह क्या है? यदि आपको पता होता तो इसको एक आँख भी नहीं देखते, पूजा तो बहुत दूर की कौड़ी है। इस अंध भक्ति को त्याग के वेदो और गीता के  आधार पे भक्ति करे जो की सिर्फ संत रामपाल जी महराज बताए है। 

Wednesday, November 14, 2018

Meharishi Dayanand-A Drug Addict

महृषि दयानन्द -एक नशेड़ी 



एक सही ऋषि या महृषि वह होता है जो भगवान् प्राप्ति के लिए प्रयत्न करे ना की नशा कर के एंड-बेंड बोले। 
महृषि दयानन्द एक ऐसा घटिया व्यक्ति था जो हर तरह का नशा करता था लेकिन  दिखाने के  लिए लोगो के  सामने महृषि बनने का ढोंग करता था। यह सचाई आर्य समाज के लोग स्वीकार करने को त्यार नहीं है। आज हम उनको और आपको इस दयानन्द का नशेड़ी पना दिखाते  है प्रमाणों के साथ। 

महृषि दयानन्द तंभाकु खाता और सुंगता भी था। 




  • पुस्तक महृषि दयानन्द स्वरस्वती का जीवन चरित्र के पेज नंबर 208 की फोटो कॉपी 



यह फोटो कॉपी "चरित्र महऋषि दयानन्द सवरस्वति " की है जो अमर शहीद पंडित लेखराम द्वारा संकलित परमाणित उर्दू भाषा  का आर्य भाषा  में अनुवाद है। इनके अनुवाद करता "आर्य महोपदेशक श्री कविराज रघुनन्दन सिंह "निर्मल", संपादक श्री पंडित हरिस्चन्द्र विधालंकार। प्रकाशक : आर्य समाज नयाबांस दिल्ली -6 (प्रथम बार विक्रमी सवंत 2028=सन 1971 में छपा )

इस लेख से सिद्ध हुआ की महृषि दयानन्द तंभाकू खाते भी थे और सूंघते भी थे।

महृषि दयानन्द भांग पीता था 


  • पुस्तक महृषि दयानन्द स्वरस्वती का जीवन चरित्र के पेज नंबर 50 की फोटो कॉपी 



इसमें स्पश्ट लिखा है की महृषि दयानन्द ने स्वम् अपनी जीवनी में लिखा है की उनको भांग पिने का दोष लग गया। उसके प्रभाव से पूर्ण रूप से बेसुध हो जाता था और योग अभ्यास भी करता था। 

विचार करे - ऐब करने वाला व्यक्ति साधना कर सकता है? बेसुध व्यक्ति अभ्यास रत\हो सकता है ? दयानन्द कोई महृषि नहीं था वह एक नंबर का भांगपाढ व्यक्ति था। 

  • महृषि दयानन्द  की और भी काली करतुते देखने  के लिए इस वीडियो को पूरा देखे। इस वीडियो में प्रमाण आपके सामने खोल क दिखाए जाएंगे। 


निष्कर्ष :- इस तरह का नशेड़ी व्यक्ति था दयानन्द जो हर तरह की बुराई करता था लेकिन दावा  करता था समाज सुधारक का।  आज इसकी पोल खोल दी संत रामपाल जी महाराज ने और इसकी नीच और घिनौनी हरकते सबके सामने ला दी। 

Monday, November 12, 2018

Wednesday, November 7, 2018

Relation Between Bhrama Vishnu Shiv Durga And Bhram(Kaal)

               ब्रम्हा विष्णु शिव जी का जीवन परिचय 

हिन्दू धर्म में ब्रम्हा विष्णु शिव जी का सबसे ऊचा स्थान है लेकिन क्या हम जानते है इनकी उत्पति कैसे हुई?
कोई कहता है की शिव जी ने इनकी उत्पत्ति की, कोई कहता है आदि शक्ति ने इनकी उत्त्पति की। यह सब आधार हीन बाते है।  हम आपको आज बताते है इनका जन्म  कैसे हुआ, कौन है इनके माता पिता और क्या इनकी मृत्यु होती है वह भी प्रमाणों क साथ।

 ब्रम्हा विष्णु शिव जी की माता कौन है?

                           
 ब्रम्हा विष्णु शिव जी की माता दुर्गा जी है जिनको प्रक्रति भी कहते है। 

प्रमाण :- श्री देवी महापुराण (गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित) के तीसरे स्कंद
पृष्ठ 123 पर श्री विष्णु जी ने अपनी माता दुर्गा की स्तुति करते हुए कहा है कि
हे मात! आप शुद्ध स्वरूपा हो, सारा संसार आप से ही उद्भाषित हो रहा है, हम
आपकी कृपा से विद्यमान हंै, मैं, ब्रह्मा और शंकर तो जन्मते-मरते हैं, हमारा तो
अविर्भाव (जन्म) तथा तिरोभाव (मृत्यु) हुआ करता है, हम अविनाशी नहीं हैं। तुम
ही जगत जननी और सनातनी देवी हो और प्रकृति देवी हो। शंकर भगवान बोले,
हे माता! विष्णु के बाद उत्पन्न होने वाले ब्रह्मा जब आप का पुत्रा है तो क्या मैं
तमोगुणी लीला करने वाला शंकर तुम्हारी सन्तान नहीं हुआ अर्थात् मुझे भी
उत्पन्न करने वाली तुम ही हो
 इस देवी महापुराण के उल्लेख से सिद्ध हुआ कि
श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शंकर जी को जन्म देने वाली माता श्री दुर्गा
देवी (अष्टंगी देवी) है और तीनों  देव  नाशवान है।



इससे यह तो सिद्ध होता है की इन तीनो देव की माता दुर्गा जी है तो फिर पिता कौन हुआ ?


इन तीन देव के पिता का नाम है ज्योति निरंजन जिसे बह्र भी कहते है और उसका ॐ मन्त्र है. 

प्रमाण :- श्री शिव महापुराण (गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित) में इनके
पिता का ज्ञान है, श्री शिव महापुराण के रूद्रसंहिता खण्ड में पृष्ठ 100 से 110
तक निम्न प्रकरण है:-
अपने पुत्रा नारद जी के प्रश्न का उत्तर देते हुए श्री ब्रह्मा जी ने कहा कि
हे पुत्रा! आपने सृष्टि के उत्पत्तिकर्ता के विषय में जो प्रश्न किया है, उसका उत्तर सुन!
प्रारम्भ में केवल एक “सद्ब्रह्म” ही शेष था। सब स्थानों पर प्रलय था। उस
निराकार परमात्मा ने अपना स्वरूप शिव जैसा बनाया। उसको “सदाशिव” कहा
जाता है, उसने अपने शरीर से एक स्त्राी निकाली, वह स्त्राी दुर्गा, जगदम्बिका,
प्रकृति देवी तथा त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव) की जननी कहलाई जिसकआठ भुजाएं हैं, इसी को शिवा भी कहा है।

  • श्री विष्णु जी की उत्पति :- सदा शिव और दुर्गा ने पति पत्नी कर्म किया जिसे एक पुत्र उत्पन हुआ जिसका नाम विष्णु रखा। 
  • श्री ब्रम्हा जी की उत्पति :-  ब्रम्हा जी ने  बताया जिस प्रकार विष्णु जी की उत्पति हुई, उसी प्रकार सदा शिव और दुर्गा जी से मेरी उत्पति हुई। 
  • शिव जी की उत्पति :-श्री शिव महापुराण के विध्वेश्वर संहिता खण्ड पृष्ठ 24 से 30 पर प्रमाण :-एक समय श्री ब्रह्मा जी तथा श्री विष्णु जी का इस बात पर युद्ध हो गया कि ब्रह्मा जी ने कहा मैं तेरा पिता हूँ क्योंकि यह संसार मेरे से उत्पन्न हुआ है, मैं प्रजापिता हूँ। विष्णु जी ने कहा कि मैं तेरा पिता हूँ, तू मेरे नाभि कमल से उत्पन्न हुआ है। दोनों एक-दूसरे को मारने के लिए तत्पर हो गए। उसी समय सदाशिव अर्थात् काल ब्रह्म ने उन दोनों के बीच में एक सफेद रंग का प्रकाशमय स्तंभ खड़ा कर दिया, फिर स्वयं शंकर के रूप में प्रकट होकर उनको बताया कि तुम कोई भी कर्ता नहीं हो।हे पुत्रो! मैंने तुमको जगत की उत्पत्ति और स्थिति रूपी दो कार्य दिए हैं,इसी प्रकार मैंने शंकर और रूद्र को दो कार्य संहार व तिरोगति दिए हैं, मुझे वेदों में ब्रह्म कहा है। मेरे पाँच मुख हैं, एक मुख से अकार (अ), दूसरे मुख से उकारउ) तथा तीसरे मुख से मुकार (म), चैथे मुख से बिन्दु (.) तथा पाँचवे मुखसे नाद (शब्द) प्रकट हुए हैं, उन्हीं पाँच अववयों से एकीभूत होकर एक अक्षर ओम् (ऊँ) बना है, यह मेरा मूल मन्त्रा है।उपरोक्त शिव महापुराण के प्रकरण से सिद्ध हुआ कि श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णुजी तथा श्री शकंर जी की माता श्री दुर्गा देवी (अष्टंगी देवी) है तथा पिता सदाशिव अर्थात् “काल ब्रह्म” है जिसने श्रीमद् भगवत गीता का ज्ञान श्री कृष्णजी में प्रवेश करके बोला था। इसी को क्षर पुरूष, क्षर ब्रह्म भी कहा गया है। यही प्रमाण श्री मद्भगवत गीता अध्याय 14 श्लोक 3 से 5 में भी है कि रज् (रजगुणब्रह्मा), सत् (सतगुण विष्णु), तम् (तमगुण शंकर) तीनों गुण प्रकृति अर्थात् दुर्गादेवी से उत्पन्न हुए हैं। प्रकृति तो सब जीवों को उत्पन्न करने वाली माता है।मैं (गीता ज्ञान दाता) सब जीवों का पिता हूँ। मैं दुर्गा (प्रकृति) के गर्भ में बीजस्थापित करता हूँ जिससे सबकी उत्पत्ति होती है। खुद  अपनी आँखो से सचाई जाने क लिए यह वीडियो देखे 

गीता जी में प्रमाण ब्रम्हा  विष्णु शिव जी के  माता पिता का


यही प्रमाण श्री मद्भगवत गीता अध्याय 14 श्लोक 3 से 5 में भी है कि रज् (रजगुणब्रह्मा), सत् (सतगुण विष्णु), तम् (तमगुण शंकर) तीनों गुण प्रकृति अर्थात् दुर्गादेवी से उत्पन्न हुए हैं। प्रकृति तो सब जीवों को उत्पन्न करने वाली माता है।मैं (गीता ज्ञान दाता) सब जीवों का पिता हूँ। मैं दुर्गा (प्रकृति) के गर्भ में बीजस्थापित करता हूँ जिससे सबकी उत्पत्ति होती है।

सदा शिव और शिव में अंतर है

सदा शिव तमगुढ़ शिव क पिता है और इन्ही सदा शिव से ही ब्रम्हा विष्णु जी की उत्पति हुई। 
देखिये प्रमाण शिव पुराण से ही। 
ऊपर की तस्वीर से सिद्ध होता है कि सदा शिव(काल) और शिव दो अलग -अलग है। 

सदा शिव(काल) और दुर्गा जी के बीच सम्बन्ध 

ऊपर के प्रमाणों से यह तो सिद्ध हो गया की ब्रम्हा विष्णु शिव जी की उत्पति सदा शिव और दुर्गा जी से हुई तो क्या वाकई में सदा शिव और दुर्गा जी  पति पत्नी  है?
आइए इसको भी प्रमाणों के साथ जानते है। 

प्रमाण :-  श्री देवी महापुराण (गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित) के तीसरे स्कंद


पृष्ठ 114 -115  


Monday, November 5, 2018

गीता का ज्ञान किसने दिया?

प्रशन :- गीता का ज्ञान किसने दिया?

उत्तर :- अगर किसी हिंदू से पूछेंगे कि गीता का ज्ञान किसने दिया तो वो तुरंत कहेगा श्री कृष्ण ने लेकिन क्या वाकई गीता का ज्ञान श्री कृष्ण ने दिया था या श्री कृष्ण के अंदर किसी ने प्रवेश कर के?
असलियत यह है कि गीता का ज्ञान  काल ने (जो कि ब्रह्मा विष्णु शिव जी का पिता है और दुर्गा जी का पति है)उसने श्री कृष्ण जी में प्रवेश करके बोला था|
आइए जानते हैं प्रमाणो के साथ

 प्रमाण 1 :- गीता अध्याय 10 में जब गीता ज्ञान दाता ने अपना
विराट रूप दिखा दिया तो उसको देखकर अर्जुन काँपने लगा, भयभीत हो गया।
यहाँ पर यह बताना भी अनिवार्य है कि अर्जुन का साला श्री कृष्ण था क्योंकि श्री
कृष्ण की बहन सुभद्रा का विवाह अर्जुन से हुआ था।
गीता ज्ञान दाता ने जिस समय अपना भयंकर विराट रूप दिखाया जो हजार
भुजाओं वाला था। तब अर्जुन ने पूछा कि हे देव! आप कौन हैं? (गीता अध्याय
11 श्लोक 31)
हे सहंस्राबाहु (हजार भुजा वाले) आप अपने चतुर्भुज रूप में दर्शन दीजिए
(क्योंकि अर्जुन उन्हें विष्णु अवतार कृष्ण तो मानता ही था, परन्तु उस समय श्री
कृष्ण के शरीर से बाहर निकलकर काल ने अपना अपार विराट रूप दिखाया था)
मैं भयभीत हूँ, आपके इस रूप को सहन नहीं कर पा रहा हूँ। (गीता अध्याय 11
श्लोक 46)

विचार करें :- क्या हम अपने साले से पूछेंगे कि हे महानुभाव!
बताईए आप कौन हैं? नहीं। एक समय एक व्यक्ति में प्रेत बोलने लगा। साथ बैठे
व्यक्ति ने पूछा आप कौन बोल रहे हो? उत्तर मिला कि तेरा मामा बोल रहा हूँ।
मैं दुर्घटना में मरा था। क्या हम अपने भाई को नहीं जानते? ठीक इसी प्रकार श्री
कृष्ण में काल बोल रहा था।

प्रमाण 2 :- गीता अध्याय 11 श्लोक 21 में अर्जुन ने कहा कि आप तो
देवताओं के समूह के समूह को ग्रास (खा) रहे हैं जो आपकी स्तुति हाथ जोड़कर
भयभीत होकर कर रहे हैं। महर्षियों तथा सिद्धों के समुदाय आप से अपने जीवन
की रक्षार्थ मंगल कामना कर रहे हैं। गीता अध्याय 11 श्लोक 32 में गीता ज्ञान
दाता ने बताया कि हे अर्जुन! मैं बढ़ा हुआ काल हूँ। अब प्रवृत हुआ हूँ अर्थात्
श्री कृष्ण के शरीर में अब प्रवेश हुआ हूँ। सर्व व्यक्तियों का नाश करूँगा। विपक्ष
की सर्व सेना, तू युद्ध नहीं करेगा तो भी नष्ट हो जाएगी।
इससे सिद्ध हुआ कि गीता का ज्ञान श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रविष्ट होकर
काल ने कहा है। श्री कृष्ण जी ने पहले कभी नहीं कहा कि मैं काल हूँ। श्री कृष्ण
जी को देखकर कोई भयभीत नहीं होता था। गोप-गोपियाँ, ग्वाल-बाल, पशु-पक्षी
सब दर्शन करके आनंदित होते थे। तो ‘‘क्या श्री कृष्ण जी काल थे?‘‘ नहीं। इसलिए गीता ज्ञान दाता ‘‘काल‘‘ है जिसने श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रवेश
करके गीता शास्त्रा का ज्ञान दिया।

प्रमाण 3 :- गीता अध्याय 11 श्लोक 47 में गीता ज्ञानदाता ने कहा कि
हे अर्जुन! मैंने प्रसन्न होकर अपनी शक्ति से तेरी दिव्य दृष्टि खोलकर यह विराट
रूप दिखाया है। यह विराट रूप तेरे अतिरिक्त पहले किसी ने नहीं देखा है।

विचार करें :- महाभारत ग्रन्थ में प्रकरण आता है कि
जिस समय श्री कृष्ण जी कौरवों की सभा में उपस्थित थे और उनसे कह रहे थे
कि आप दोनों (कौरव और पाण्डव) आपस में बातचीत करके अपनी सम्पत्ति
(राज्य) का बटँवारा कर लो, युद्ध करना शोभा नहीं देता। पाण्डवों ने कहा कि
हमें पाँच (5) गाँव दे दो, हम उन्हीं से निर्वाह कर लेंगे। दुर्योधन ने यह भी माँग
नहीं मानी और कहा कि पाण्डवों के लिए सुई की नोक के समान भी राज्य नहीं
है, युद्ध करके ले सकते हैं। इस बात से श्री कृष्ण भगवान बहुत नाराज हो गए
तथा दुर्योधन से कहा कि तू पृथ्वी के नाश के लिए जन्मा है, कुलनाश करके
टिकेगा। भले मानव! कहाँ आधा, राज्य कहाँ 5 गाँव। कुछ तो शर्म कर ले।
इतनी बात श्री कृष्ण जी के मुख से सुनकर दुर्योधन राजा आग-बबूला हो गया
और सभा में उपस्थित अपने भाईयों तथा मन्त्रियों से बोला कि इस कृष्ण यादव
को गिरफ्तार कर लो। उसी समय श्री कृष्ण जी ने विराट रूप दिखाया। सभा में
उपस्थित सर्व सभासद उस विराट रूप को देखकर भयभीत होकर कुर्सियों के
नीचे छिप गए, कुछ आँखों पर हाथ रखकर जमीन पर गिर गए। श्री कृष्ण जी
सभा छोड़ कर चले गए तथा अपना विराट रूप समाप्त कर दिया।
अब उस बात पर विचार करते हैं जो गीता अध्याय 11 श्लोक 47 में गीता
ज्ञान दाता ने कहा था कि यह मेरा विराट रूप तेरे अतिरिक्त अर्जुन! पहले किसी
ने नहीं देखा था। यदि श्री कृष्ण गीता ज्ञान बोल रहे होते तो यह कभी नहीं कहते
कि मेरा विराट रूप तेरे अतिरिक्त पहले किसी ने नहीं देखा था क्योंकि श्री कृष्ण
जी के विराट रूप को कौरव तथा अन्य सभासद पहले देख चुके थे।
इससे सिद्ध हुआ कि श्रीमद्भगवत गीता का ज्ञान श्री कृष्ण ने नहीं कहा,
उनके शरीर में प्रेतवत प्रवेश करके काल (क्षर पुरूष) ने कहा था।

प्रमाण 4:- महाभारत ग्रन्थ में (गीता प्रैस गोरखपुर (न्ण्च्) से प्रकाशित
में) भाग-2 पृष्ठ 800-801 पर लिखा है कि महाभारत के युद्ध के पश्चात् राजा
युधिष्ठर को राजगद्दी पर बैठाकर श्री कृष्ण जी ने द्वारिका जाने की तैयारी की।
तब अर्जुन ने श्री कृष्ण जी से कहा कि आप वह गीता वाला ज्ञान फिर से सुनाओ,
मैं उस ज्ञान को भूल गया हूँ। श्री कृष्ण जी ने कहा कि हे अर्जुन! आप बड़े
बुद्धिहीन हो, बड़े श्रद्धाहीन हो। आपने उस अनमोल ज्ञान को क्यों भुला दिया,
अब मैं उस ज्ञान को नहीं सुना सकता क्योंकि मैंने उस समय योगयुक्त होकर
गीता का ज्ञान सुनाया था।
विचार करें :- युद्ध के समय योगयुक्त हुआ जा सकता है तो शान्त
वातावरण में योगयुक्त होने में क्या समस्या हो सकती है? वास्तव में यह ज्ञान
काल ने श्री कृष्ण में प्रवेश करके बोला था।
श्री कृष्ण जी को स्वयं तो वह गीता ज्ञान याद नहीं, यदि वे वक्ता थे तो
वक्ता को तो सर्व ज्ञान याद होना चाहिए। श्रोता को तो प्रथम बार में 40 प्रतिशत
ज्ञान याद रहता है। इससे सिद्ध है कि गीता का ज्ञान श्री कृष्ण जी में प्रवेश
होकर काल (क्षर पुरूष) ने बोला था। उपरोक्त प्रमाणों से स्पष्ट हुआ कि श्रीमद्
भगवत गीता का ज्ञान श्री कृष्ण ने नहीं कहा। उनको तो पता ही नहीं कि क्या
कहा था, श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रवेश करके काल पुरूष (क्षर पुरूष) ने बोला था।